सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मिडिल-क्लास"* का होना

*"मिडिल-क्लास"* का होना भी किसी वरदान से कम नही है कभी बोरियत नहीं होती.!

जिंदगी भर कुछ ना कुछ आफत लगी ही रहती है.!

मिडिल क्लास वालो की स्थिति सबसे दयनीय होती है, न इन्हे 'तैमूर' जैसा बचपन नसीब होता है, न अनूप जलोटा जैसा बुढ़ापा, फिर भी अपने आप में उलझते हुऐ व्यस्त रहते है.!

मिडिल क्लास होने का भी अपना फायदा है। चाहे BMW का भाव बढे या AUDI का या फिर नया i phone लांच हो जाऐ, घंटा फर्क नही पङता.!

मिडिल क्लास लोगों की आधी जिंदगी तो झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही चली जाती है.! 

इन घरो में पनीर की सब्जी तभी बनती है तो जब दुध गलती से फट जाता है और मिक्स-वेज की सब्ज़ी भी तभी बनती हैं जब रात वाली सब्जी बच जाती है.! 

इनके यहाँ फ्रूटी, कोल्ड ड्रिंक एक साथ तभी आते है, जब घर में कोई बढिया वाला रिश्तेदार आ रहा होता है.!

मिडिल क्लास वालो के कपङो की तरह खाने वाले चावल की भी तीन वेराईटी होती है!डेली, कैजुवल और पार्टी वाला.!

छानते समय चायपत्ती को दबा कर लास्ट बून्द तक निचोड़ लेना ही मिडिल क्लास वालो के लिऐ परमसुख की अनुभुति होती है.!

ये लोग रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल नही करते, सीधे अगरबत्ती जला लेते है.!

मिडिल क्लास भारतीय परिवार के घरों में Get together नही होता, यहां 'सत्यनारायण भगवान की कथा' होती है.!

इनका फैमिली बजट इतना सटीक होता है कि सैलरी अगर 31के बजाय 1 को आये तो गुल्लक फोड़ना पड़ जाता है.!

मिडिल क्लास लोगो की आधी ज़िन्दगी तो "बहुत महँगा है" बोलने में ही निकल जाती है.!

इनकी "भूख" भी होटल के रेट्स पर डिपेंड करती है। दरअसल महंगे होटलों की मेन्यू-बुक में मिडिल क्लास इंसान 'फूड-आइटम्स' नहीं बल्कि अपनी "औकात" ढूंढ रहा होता है.!

इश्क मोहब्बत तो अमीरो के चोचलें है मिडिल क्लास वाले तो सीधे "ब्याह" करते हैं इनके जीवन में कोई वैलेंटाइन नहीं होता "जिम्मेदारियां" जिंदगी भर बजरंग-दल सी पीछे लगी रहती हैं.!

मध्यम वर्गीय दूल्हा दुल्हन भी मंच पर ऐसे बैठे रहते हैं, मानो जैसे किसी भारी सदमे में हो.!

अमीर शादी के बाद हनीमून पे चले जाते है और मिडिल क्लास लोगो की शादी के बाद टेंन्ट बर्तन वाले ही इनके पीछे पड़ जाते है.! 

मिडिल क्लास बंदे को पर्सनल बेड और रूम भी शादी के बाद ही अलाॅट हो पाता है! 

मिडिल क्लास बस ये समझ लो कि जो तेल सर पे लगाते है वही तेल मुंह में भी रगङ लेते है.!

एक सच्चा मिडिल क्लास आदमी गीजर बंद करके तब तक नहाता रहता है जब तक कि नल से ठंडा पानी आना शुरू ना हो जाए!

रूम ठंडा होते ही AC बंद करने वाला मिडिल क्लास आदमी चंदा देने के वक्त नास्तिक हो जाता है और प्रसाद खाने के वक्त आस्तिक.!

दरअसल मिडिल-क्लास तो चौराहे पर लगी घण्टी के समान है, जिसे लूली-लगंड़ी, अंधी-बहरी, अल्पमत-पूर्णमत हर प्रकार की सरकार पूरा दम से बजाती है।

मिडिल क्लास को आजतक बजट में वही मिला हैं जो अक्सर हम मंदिर में बजाते हैं।

फिर भी हिम्मत करके मिडिल क्लास आदमी की पैसा बचाने की बहुत कोशिश करता हैं लेकिन बचा कुछ भी नहीं पाता।

हकीकत में मिडिल मैन की हालत पंगत के बीच बैठा हुआ उस आदमी की तरह होता है जिसके पास पूड़ी-सब्जी चाहे इधर से आये,चाहे उधर से, उस तक आते-आते खत्म हो जाता है।

मिडिल क्लास के सपने भी लिमिटेड होते है "टंकी भर गई है मोटर बंद करना है"। 

गैस पर दूध उबल गया है चावल जल गया है इसी टाईप के सपने आते है। दिल मे अनगिनत सपने लिए बस चलता ही जाता है चलता ही जाता है।

🙊🙈🙉

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

घरों में छुपा संघर्ष: क्यों मानसिक स्वास्थ्य को प्यार चाहिए, शर्म नहीं

  घरों में छुपा संघर्ष: क्यों मानसिक स्वास्थ्य को प्यार चाहिए, शर्म नहीं हम भारतीयों को अपने मजबूत परिवारों पर गर्व होता है, वो अटूट सहारा प्रणाली जो हमें हर मुश्किल दौर में साथ बांधकर रखती है. लेकिन क्या होता है जब उन ज़िम्मेदारियों का बोझ सहना इतना ज़्यादा हो जाता है कि उसे चुपचाप सहना पड़े? क्या होता है जब वो जो सब कुछ संभाले हुए हैं, वो अदृश्य रूप से जूझ रहे हैं? मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं हम में से बहुतों को जकड़ लेती हैं, यहां भारत में, फिर भी हम अक्सर उन्हें कमज़ोरी या किसी तरह की कमी के रूप में खारिज कर देते हैं. लेकिन ये पागलपन या अस्थिरता के संकेत नहीं हैं. ये भीतर से आने वाली पुकारें हैं, मदद के लिए गुहार लगाते हैं, जो ज़िंदगी के थपेड़ों और असफलताओं के बोझ तले दबे हुए हैं. अपने मां बाप या किसी ऐसे भाई या बहन की कल्पना कीजिए जो हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते है, हर बोझ को अपने कंधे पर उठा लेते है. लेकिन क्या हो अगर वही भाई या बहन डूब रहा हो, चारों तरफ शुभचिंतक मौजूद हों, परंतु मदद के लिए आवाज़ न निकाल पाए? शायद उसकी मुस्कान एक मुखौटा है, जो तन...

भावनाओं का संक्रमण: हमारी जुड़ी हुई दुनिया में साझा भावनाओं की छिपी ताकत

  भावनाओं का संक्रमण: हमारी जुड़ी हुई दुनिया में साझा भावनाओं की छिपी ताकत आजकल हम जो इतने जुड़े हुए हैं, वहां हम लगातार हर तरह की जानकारी और भावनाओं से घिरे रहते हैं। सोशल मीडिया की खुशियों से लेकर बड़ी खबरों के डर तक, ऐसा लगता है कि हमारी भावनाएं ऑनलाइन और असल दुनिया में दूसरों से मिलती हैं। इस चीज को भावनाओं का संक्रमण कहते हैं, यानि जाने-अनजाने में दूसरों की भावनाएं हम तक पहुंच जाती हैं । ये एक बहुत बड़ी ताकत है जो हमारा मूड, हमारे सोचने का तरीका, और यहाँ तक कि हमारी सेहत भी बदल सकती है, और ये अक्सर बिना हमें पता चले होता है। इसके पीछे का विज्ञान भावनाओं का संक्रमण सिर्फ एक कहावत नहीं है। खोज बताती है कि इसका दिमाग से बहुत गहरा संबंध है। हमारे दिमाग में कुछ खास कोशिकाएं होती हैं, 'मिरर न्यूरॉन्स'। जब हम किसी को कुछ करते या महसूस करते हुए देखते हैं, ये कोशिकाएं काम करने लगती हैं। जैसे, जब हम किसी को हंसते हुए देखते हैं, तो हमारे अपने मिरर न्यूरॉन्स उसे नकल करते हैं, और हम भी शायद खुश हो जाते हैं। सिर्फ नकल ही नहीं, भावनाओं का संक्रमण हमारी बॉडी लैंग्वेज और आवाज के उतार-चढ़ा...

Ulta chor kotwal KO daante