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राजनेताओं का असली चेहरा : कब हम जागेंगे?

  राजनेताओं का असली चेहरा : कब हम जागेंगे? आज की राजनीति के जटिल परिदृश्य में हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह प्रणाली टूटी हुई है। कड़वा सच यह है कि राजनेता और पार्टियां आम आदमी के लिए काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने स्वार्थ और पैसे के लिए काम कर रहे हैं। सवाल यह है कि हम इस सच्चाई को कब स्वीकार करेंगे और असली बदलाव की मांग करेंगे? लोकतंत्र का भ्रम हमें यह बताया जाता है कि लोकतंत्र एक ऐसी प्रणाली है जहां लोगों की आवाज सुनी जाती है। हम अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं जो हमारे लिए फैसले लेते हैं, और बदले में वे समाज के हित में काम करते हैं। लेकिन सच्चाई इससे काफी दूर है। राजनेता और पार्टियां अपनी ताकत और पैसे के लिए ज्यादा चिंतित हैं, न कि लोगों के हित के लिए। सिंडिकेट और लॉबी की ताकत पीछे की ओर, शक्तिशाली सिंडिकेट और लॉबी राजनीतिक प्रक्रिया पर काफी प्रभाव डालते हैं। ये समूह बड़े व्यापार, कॉर्पोरेट और अमीर लोगों के हित में काम करते हैं। वे अपने संसाधनों का उपयोग नीति और कानून बनाने में करते हैं, अक्सर आम आदमी के नुकसान में。उदाहरण के लिए, फार्मास्युटिकल उद्योग स्वास्थ्य नीति पर प
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अपने लोगों की परवाह करने में छुपी कठिनाई: सहानुभूति से थक जाने की स्थिति(Compassion Fatigue)

  अपने लोगों की परवाह करने में छुपी कठिनाई: सहानुभूति से थक जाने की स्थिति(Compassion Fatigue) अपने रिश्तों में हम अक्सर किसी के सलाहकार, सहयोगी और देखभाल करने वाले बन जाते हैं। चाहे हमारा जीवनसाथी किसी मुश्किल दौर से गुज़र रहा हो, परिवार में कोई बीमार हो या कोई दोस्त किसी संकट में फंसा हो, हम भावनात्मक और कामों में मदद पहुंचाने के लिए तुरंत आगे आ जाते हैं। हालांकि यह देखभाल अपनेपन और हमदर्दी से निकलती है, इसकी वजह से हम कई बार खुद को बहुत ज्यादा भावनात्मक और शारीरिक रूप से थका हुआ पाते हैं। इसे कहते हैं "कम्पैशन फटीग" यानी "सहानुभूति से होने वाली थकान"। यह लेख निजी रिश्तों में होने वाली इस "सहानुभूति से होने वाली थकान" की गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करता है। हम चर्चा करेंगे कि यह कैसे आप पर असर करती है, इससे निपटने के तरीके क्या हैं, और कैसे अपने बारे में भी सोचते हुए हम अपने अपनों का साथ दे सकते हैं। निजी रिश्तों में "सहानुभूति से होने वाली थकान" क्या है यह थकान सिर्फ पेशेवर लोगों पर नहीं, किसी पर भी असर कर सकती है। जब हम किसी के लंबे दुख से

भावनाओं का संक्रमण: हमारी जुड़ी हुई दुनिया में साझा भावनाओं की छिपी ताकत

  भावनाओं का संक्रमण: हमारी जुड़ी हुई दुनिया में साझा भावनाओं की छिपी ताकत आजकल हम जो इतने जुड़े हुए हैं, वहां हम लगातार हर तरह की जानकारी और भावनाओं से घिरे रहते हैं। सोशल मीडिया की खुशियों से लेकर बड़ी खबरों के डर तक, ऐसा लगता है कि हमारी भावनाएं ऑनलाइन और असल दुनिया में दूसरों से मिलती हैं। इस चीज को भावनाओं का संक्रमण कहते हैं, यानि जाने-अनजाने में दूसरों की भावनाएं हम तक पहुंच जाती हैं । ये एक बहुत बड़ी ताकत है जो हमारा मूड, हमारे सोचने का तरीका, और यहाँ तक कि हमारी सेहत भी बदल सकती है, और ये अक्सर बिना हमें पता चले होता है। इसके पीछे का विज्ञान भावनाओं का संक्रमण सिर्फ एक कहावत नहीं है। खोज बताती है कि इसका दिमाग से बहुत गहरा संबंध है। हमारे दिमाग में कुछ खास कोशिकाएं होती हैं, 'मिरर न्यूरॉन्स'। जब हम किसी को कुछ करते या महसूस करते हुए देखते हैं, ये कोशिकाएं काम करने लगती हैं। जैसे, जब हम किसी को हंसते हुए देखते हैं, तो हमारे अपने मिरर न्यूरॉन्स उसे नकल करते हैं, और हम भी शायद खुश हो जाते हैं। सिर्फ नकल ही नहीं, भावनाओं का संक्रमण हमारी बॉडी लैंग्वेज और आवाज के उतार-चढ़ा

The expert Talk

🤨 After a Morning walk, a Group of Doctors were standing at a road-side Restaurant enjoying a Cup of Tea.. They saw a Man limping towards them.. One Doctor said, "he has Arthritis in his Left Knee.." The second said, "he has Plantar Faciitis.." The third said, "just an Ankle Sprain.." The fourth said, "see that Man cannot lift his Knee, he looks to have Lower Motor Neuron disease.." "But to me he seems a Hemiplegia Scissors Gait," said the fifth.. Before the sixth could proclaim his Diagnosis, the Man reached the Group and asked, "Is there a Cobbler nearby who can repair my Slipper.?" *This is exactly how the Experts talk in Social & Online Media on ALL THE ISSUES and make them big issues  these days..!!* 🤣😁🤣🥴

मिडिल-क्लास"* का होना

*"मिडिल-क्लास"* का होना भी किसी वरदान से कम नही है कभी बोरियत नहीं होती.! जिंदगी भर कुछ ना कुछ आफत लगी ही रहती है.! मिडिल क्लास वालो की स्थिति सबसे दयनीय होती है, न इन्हे 'तैमूर' जैसा बचपन नसीब होता है, न अनूप जलोटा जैसा बुढ़ापा, फिर भी अपने आप में उलझते हुऐ व्यस्त रहते है.! मिडिल क्लास होने का भी अपना फायदा है। चाहे BMW का भाव बढे या AUDI का या फिर नया i phone लांच हो जाऐ, घंटा फर्क नही पङता.! मिडिल क्लास लोगों की आधी जिंदगी तो झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही चली जाती है.!  इन घरो में पनीर की सब्जी तभी बनती है तो जब दुध गलती से फट जाता है और मिक्स-वेज की सब्ज़ी भी तभी बनती हैं जब रात वाली सब्जी बच जाती है.!  इनके यहाँ फ्रूटी, कोल्ड ड्रिंक एक साथ तभी आते है, जब घर में कोई बढिया वाला रिश्तेदार आ रहा होता है.! मिडिल क्लास वालो के कपङो की तरह खाने वाले चावल की भी तीन वेराईटी होती है!डेली, कैजुवल और पार्टी वाला.! छानते समय चायपत्ती को दबा कर लास्ट बून्द तक निचोड़ लेना ही मिडिल क्लास वालो के लिऐ परमसुख की अनुभुति होती है.! ये लोग रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल नही क

आपके लड़के ने स्कूल में टॉप किया है

*मैडम - हेलो सर आपके लड़के ने स्कूल में टॉप किया है🤚🏻* *पिताजी - सॉरी रॉंग नंबर.* *ये होता है भरोसा जो घर वालो का हम पर था. 😂*

गणित का मर्डर

एक बार पति ने पत्नी से 250 रु उधार लिए,  कुछ दिनों बाद फिर ₹250 उधार लिए, कुछ दिनो बाद पत्नी ने अपने पैसे  मांगे।  पति ने पूछा कितने ?  पत्नी ने कहा ₹4100. वो बोला कैसे ? 🥺😳🥵  पत्नी का लेख-जोखा। 👇👇👇👇   ₹ 2   5   0 +₹ 2   5   0 -----------------   ₹ 4  10   0 पति तब से विचार कर रहा था, जाने किस स्कूल से पढी है ? पति ने बुद्धि लगाकर ₹400 दे  दिये , और पूछा अब कितने बचे ? फिर पत्नी ने अपना गणित लगाया,   ₹ 4 1 0 0 - ₹ 4 0 0 ----------------    ₹ 0100 पति ने ₹ 100 दे दिये। हिसाब बराबर दोनों आनंदित जीवन जी रहें है। पर गणित का मर्डर हो गया "वह गणित से लड़ा पत्नी से नही" 🙏ध्यान रहे हमें बिमारी से लड़ना है, बिमार से नही😷 🙏 दो ग़ज़ दूरी मास्क 😷 है जरूरी,जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं 😄 😁😁😆🤪🤪