सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अंकल, टाइम क्या हुआ है


एक रेलवे-स्टेशन की बेंच पर एक वृद्ध सज्जन बैठे ट्रेन की
प्रतीक्षा कर रहे थे. तभी एक नौजवान लड़का वहाँ आया.
लड़का - "अंकल, टाइम क्या हुआ है."
वृद्ध सज्जन - "मुझे नहीं मालूम."
लड़का - "लेकिन आपके हाथ में घडी तो है! प्लीज बता दीजिए न कितने बजे हैं ?"
वृद्ध सज्जन - "मैं नहीं बताऊँगा."
लड़का - "पर क्यों ?"
वृद्ध सज्जन - "क्योंकि अगर मैं तुम्हे टाइम बता देंगा तो तुम मुझे थैंक्यू बोलोगे और अपना नाम बताओगे.
फिर तुम
मेरा नाम, काम आदि पूछोगे. फिर संभव है हम लोग आपस में और भी बातचीत करने लगें. हम दोनों में जान-पहचान हो
जायेगी तो हो सकता है कि ट्रेन आने पर तुम मेरी बगल वाली सीट पर ही बैठ जाओ. फिर हो सकता है कि तुम भी
उसी स्टेशन पर उतरो जहां मुझे उतरना है. वहाँ मेरी बेटी,
जोकि बहुत सुन्दर है, मुझे लेने स्टेशन आयेगी. तुम मेरे साथ
ही होगे तो निश्चित ही उसे देखोगे. वह भी तुम्हे देखेगी. हो
सकता है तुम दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठो और शादी
करने की जिद करने लगो. इसलिए भाई, मुझे माफ करो
.! मैं ऐसा कंगाल दामाद नहीं चाहता जिसके पास टाइम
देखने के लिए अपनी घडी तक नहीं है .. !!"

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

घरों में छुपा संघर्ष: क्यों मानसिक स्वास्थ्य को प्यार चाहिए, शर्म नहीं

  घरों में छुपा संघर्ष: क्यों मानसिक स्वास्थ्य को प्यार चाहिए, शर्म नहीं हम भारतीयों को अपने मजबूत परिवारों पर गर्व होता है, वो अटूट सहारा प्रणाली जो हमें हर मुश्किल दौर में साथ बांधकर रखती है. लेकिन क्या होता है जब उन ज़िम्मेदारियों का बोझ सहना इतना ज़्यादा हो जाता है कि उसे चुपचाप सहना पड़े? क्या होता है जब वो जो सब कुछ संभाले हुए हैं, वो अदृश्य रूप से जूझ रहे हैं? मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं हम में से बहुतों को जकड़ लेती हैं, यहां भारत में, फिर भी हम अक्सर उन्हें कमज़ोरी या किसी तरह की कमी के रूप में खारिज कर देते हैं. लेकिन ये पागलपन या अस्थिरता के संकेत नहीं हैं. ये भीतर से आने वाली पुकारें हैं, मदद के लिए गुहार लगाते हैं, जो ज़िंदगी के थपेड़ों और असफलताओं के बोझ तले दबे हुए हैं. अपने मां बाप या किसी ऐसे भाई या बहन की कल्पना कीजिए जो हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते है, हर बोझ को अपने कंधे पर उठा लेते है. लेकिन क्या हो अगर वही भाई या बहन डूब रहा हो, चारों तरफ शुभचिंतक मौजूद हों, परंतु मदद के लिए आवाज़ न निकाल पाए? शायद उसकी मुस्कान एक मुखौटा है, जो तन...

भावनाओं का संक्रमण: हमारी जुड़ी हुई दुनिया में साझा भावनाओं की छिपी ताकत

  भावनाओं का संक्रमण: हमारी जुड़ी हुई दुनिया में साझा भावनाओं की छिपी ताकत आजकल हम जो इतने जुड़े हुए हैं, वहां हम लगातार हर तरह की जानकारी और भावनाओं से घिरे रहते हैं। सोशल मीडिया की खुशियों से लेकर बड़ी खबरों के डर तक, ऐसा लगता है कि हमारी भावनाएं ऑनलाइन और असल दुनिया में दूसरों से मिलती हैं। इस चीज को भावनाओं का संक्रमण कहते हैं, यानि जाने-अनजाने में दूसरों की भावनाएं हम तक पहुंच जाती हैं । ये एक बहुत बड़ी ताकत है जो हमारा मूड, हमारे सोचने का तरीका, और यहाँ तक कि हमारी सेहत भी बदल सकती है, और ये अक्सर बिना हमें पता चले होता है। इसके पीछे का विज्ञान भावनाओं का संक्रमण सिर्फ एक कहावत नहीं है। खोज बताती है कि इसका दिमाग से बहुत गहरा संबंध है। हमारे दिमाग में कुछ खास कोशिकाएं होती हैं, 'मिरर न्यूरॉन्स'। जब हम किसी को कुछ करते या महसूस करते हुए देखते हैं, ये कोशिकाएं काम करने लगती हैं। जैसे, जब हम किसी को हंसते हुए देखते हैं, तो हमारे अपने मिरर न्यूरॉन्स उसे नकल करते हैं, और हम भी शायद खुश हो जाते हैं। सिर्फ नकल ही नहीं, भावनाओं का संक्रमण हमारी बॉडी लैंग्वेज और आवाज के उतार-चढ़ा...

Ulta chor kotwal KO daante