एक पैसेंजर ट्रेन इंदौर से भीलवाडा की तरफ
रवाना होनी थी.
रात दस बजे सभी डिब्बे खचाखच भर गए.
हमारे एडमिन जी भी चढ़
तो गए, पर जब उन्हें बैठने तक की जगह नहीं मिली
तो उन्हें एक उपाय सूझा.
उन्होंने "सांप, सांप, सांप," चिल्लाना शुरू कर
दिया.
यात्री लोग डर के मारे सामान सहित उतर कर
दूसरे डिब्बों में चले गए.
वे ठाठ से ऊपर वाली सीट पर बिस्तर लगा कर
लेट गए, दिन भर के थके थे
सो जल्दी ही नीद भी आ गई. सवेरा हुआ,
"चाय, चाय" की आवाज पर वे उठे चाय ली और
चाय वाले से पूछा कि कौन सा स्टेशन आया है?
तो चाय वाले ने बताया, "इंदौर है."
फिर पूछा, "इंदौर से तो रात को चले थे?"
चाय वाला बोला, "इस डिब्बे में सांप निकल आया था
इसलिए इस डिब्बे को यहीं काट दिया था."
भावनाओं का संक्रमण: हमारी जुड़ी हुई दुनिया में साझा भावनाओं की छिपी ताकत आजकल हम जो इतने जुड़े हुए हैं, वहां हम लगातार हर तरह की जानकारी और भावनाओं से घिरे रहते हैं। सोशल मीडिया की खुशियों से लेकर बड़ी खबरों के डर तक, ऐसा लगता है कि हमारी भावनाएं ऑनलाइन और असल दुनिया में दूसरों से मिलती हैं। इस चीज को भावनाओं का संक्रमण कहते हैं, यानि जाने-अनजाने में दूसरों की भावनाएं हम तक पहुंच जाती हैं । ये एक बहुत बड़ी ताकत है जो हमारा मूड, हमारे सोचने का तरीका, और यहाँ तक कि हमारी सेहत भी बदल सकती है, और ये अक्सर बिना हमें पता चले होता है। इसके पीछे का विज्ञान भावनाओं का संक्रमण सिर्फ एक कहावत नहीं है। खोज बताती है कि इसका दिमाग से बहुत गहरा संबंध है। हमारे दिमाग में कुछ खास कोशिकाएं होती हैं, 'मिरर न्यूरॉन्स'। जब हम किसी को कुछ करते या महसूस करते हुए देखते हैं, ये कोशिकाएं काम करने लगती हैं। जैसे, जब हम किसी को हंसते हुए देखते हैं, तो हमारे अपने मिरर न्यूरॉन्स उसे नकल करते हैं, और हम भी शायद खुश हो जाते हैं। सिर्फ नकल ही नहीं, भावनाओं का संक्रमण हमारी बॉडी लैंग्वेज और आवाज के उतार-चढ़ा
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