एक इंजिनियर को जॉब नही मिली
तो उसने क्लिनिक खोला और बाहर लिखा
तीन सौ रूपये मे ईलाज करवाये
ईलाज नही हुआ तो एक हजार रूपये वापिस....
एक डॉक्टर ने सोचा कि एक हजार रूपये कमाने
का अच्छा मौका है
वो क्लिनिक पर गया
और बोला
मुझे किसी भी चीज का स्वाद नही आता है
इंजिनियर : बॉक्स नं.२२ से दवा निकालो और ३ बूँद
पिलाओ
नर्स ने पिला दी
मरीज(डॉक्टर) : ये तो पेट्रोल है
इंजिनियर : मुबारक हो आपको टेस्ट महसूस हो गया
लाओ तीन सौ रूपये
डॉक्टर को गुस्सा आ गया
कुछ दिन बाद फिर वापिस गया
पुराने पैसे वसूलने
मरीज(डॉक्टर) :साहब मेरी याददास्त कमजोर हो गई है
इंजिनियर : बॉक्स नं. २२ से दवा निकालो और ३ बूँद
पिलाओ
मरीज (डॉक्टर) : लेकिन वो दवा तो जुबान की टेस्ट के
लिए है
इंजिनियर : ये लो तुम्हारी याददास्त भी वापस आ गई
लाओ तीन सौ रुपए।
इस बार डॉक्टर गुस्से में गया
डॉक्टर-मेरी नजर कम हो गई है
इंजीनियर- इसकी दवाई मेरे पास नहीं है। लो एक हजार
रुपये।
डॉक्टर-यह तो पांच सौ का नोट है।
इंजीनियर- आ गई नजर। ला तीन सौ रुपये।
घरों में छुपा संघर्ष: क्यों मानसिक स्वास्थ्य को प्यार चाहिए, शर्म नहीं हम भारतीयों को अपने मजबूत परिवारों पर गर्व होता है, वो अटूट सहारा प्रणाली जो हमें हर मुश्किल दौर में साथ बांधकर रखती है. लेकिन क्या होता है जब उन ज़िम्मेदारियों का बोझ सहना इतना ज़्यादा हो जाता है कि उसे चुपचाप सहना पड़े? क्या होता है जब वो जो सब कुछ संभाले हुए हैं, वो अदृश्य रूप से जूझ रहे हैं? मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं हम में से बहुतों को जकड़ लेती हैं, यहां भारत में, फिर भी हम अक्सर उन्हें कमज़ोरी या किसी तरह की कमी के रूप में खारिज कर देते हैं. लेकिन ये पागलपन या अस्थिरता के संकेत नहीं हैं. ये भीतर से आने वाली पुकारें हैं, मदद के लिए गुहार लगाते हैं, जो ज़िंदगी के थपेड़ों और असफलताओं के बोझ तले दबे हुए हैं. अपने मां बाप या किसी ऐसे भाई या बहन की कल्पना कीजिए जो हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते है, हर बोझ को अपने कंधे पर उठा लेते है. लेकिन क्या हो अगर वही भाई या बहन डूब रहा हो, चारों तरफ शुभचिंतक मौजूद हों, परंतु मदद के लिए आवाज़ न निकाल पाए? शायद उसकी मुस्कान एक मुखौटा है, जो तन...
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